UltranewsTv | Updated : 22 November, 2024
झलकारीबाई, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक ऐसी वीरांगना थी। जिनकी साहस और बलिदान की कहानियां आज भी हमें प्रेरणा देती हैं। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की सेना में एक साधारण सैनिक के रूप में शामिल हुई झलकारीबाई ने अपनी अद्भुत प्रतिभा और निडरता से असाधारण भूमिका निभाई।
झलकारीबाई का जन्म उत्तर प्रदेश के झांसी के पास भोजला गांव में 22 नवंबर 1830 को हुआ। एक साधारण किसान परिवार में जन्मी झलकारीबाई ने बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारबाजी और युद्ध कौशल में महारत हासिल कर ली थी। उनके पिता उन्हें लड़कों की तरह साहसी और निडर बनाना चाहते थे, और यही उनकी वीरता की नींव बना।
झलकारीबाई की बहादुरी के किस्से जब झांसी की रानी लक्ष्मीबाई तक पहुंचे, तो उन्होंने झलकारीबाई को अपनी सेना में शामिल कर लिया। झलकारीबाई न केवल एक कुशल योद्धा थीं, बल्कि रानी लक्ष्मीबाई की करीबी सहयोगी और विश्वासपात्र भी बनीं।
1857 का स्वतंत्रता संग्राम भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। अंग्रेजों ने जब झांसी पर हमला किया, तो झलकारीबाई ने अपनी रणनीति और साहस से अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा संभाला। अंग्रेजी सेना को भ्रमित करने के लिए उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई का रूप धारण किया और युद्ध का नेतृत्व किया।
झलकारीबाई ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी। उनकी वीरता और निडरता ने अंग्रेजों को भी चकित कर दिया। हालांकि, इतिहास ने झलकारीबाई जैसे योद्धाओं को वह सम्मान नहीं दिया जिसके वे हकदार थीं, लेकिन उनकी कहानियां आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं।
आज झलकारीबाई भारतीय इतिहास में महिला सशक्तिकरण और साहस की प्रतीक हैं। उनके सम्मान में कई जगहों पर मूर्तियां लगाई गई हैं और उनकी जयंती हर साल बड़े उत्साह से मनाई जाती है। झलकारीबाई हमें यह सिखाती हैं कि देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती।
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